Thursday, July 24, 2014

मेरी पोस्ट (ऐसा घर बनातें हैं ) ओपन बुक्स ऑनलाइन वेव साईट में

मेरी पोस्ट (ऐसा घर बनातें हैं ) ओपन बुक्स ऑनलाइन वेव साईट में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट  (ऐसा घर बनातें हैं ) ओपन बुक्स ऑनलाइन   वेव साईट में शामिल की गयी है।  आप सब अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं करायें। लिंक नीचे दिया गया है।


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इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं


ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये
हालात देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं


दीवारेँ  ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों
पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं


मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है
टी वी  और नेट से ही समय अपना बिताते हैं


ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों
भूले से भी मेहमाँ को  नहीं घर में टिकाते हैं


अब सन्नाटे के घेरे में जरुरत भर ही आवाजें
घर में दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं



मदन मोहन सक्सेना

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