प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ८ ,मई २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ
कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ
इस आस में बीती उम्र कोई हमें अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ
जिस रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानो की मयखाना हुआ
इस कदर अन्जान हैं हम आज अपने हाल से
लोग अब कहने लगे कि शख्श बेगाना हुआ
ढल नहीं जाते हैं लब्ज ऐसे ही रचना में कभी
गीत उनसे मिल गया कभी ग़ज़ल का पाना हुआ
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ८ ,मई २०१६ में
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
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