मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ९ ,जून २०१५ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ९ ,जून २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )
मैं रोता भला था , हँसाया मुझे क्यों
शरारत है किसकी , ये किसकी दुआ है
मुझे यार नफ़रत से डर ना लगा है
प्यार की चोट से घायल दिल ये हुआ है
वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है
भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
जिधर देखिएगा धुँआ ही धुँआ है
मेहनत से बदली "मदन " देखो किस्मत
बुरे वक्त में ज़माना किसका हुआ है
मदन मोहन सक्सेना
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