प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत
ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ५ ,जनबरी २०१५ में प्रकाशित हुयी है .
आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
जिंदगी जिंदगी
तुझे पा लिया है जग पा लिया है
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है
कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है
समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता
अब समय को चुराने लगी जिंदगी है
कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती
अब सपने सजाने लगी जिंदगी है
तेरे प्यार का ये असर हो गया है
अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है
मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है
मदन मोहन सक्सेना
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