Tuesday, February 23, 2016

मेरी पोस्ट , ग़ज़ल ( जीबन के रंग ) जागरण जंक्शन में लगातार दूसरे हफ्ते प्रकाशित


 


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , ग़ज़ल ( जीबन के रंग ) जागरण जंक्शन मेंलगातार दूसरे हफ्ते प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले बिरह के अहसास को प्रकाशित किया गया था . बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .

 

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ग़ज़ल ( जीबन के रंग )

गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते
जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है 


बंगला ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में
सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है 


जबानी के नशें में लोग क्या क्या ना किया करते
ढलते ही जबानी के बुढ़ापा टूट जाता है 


समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है
समय को गर नहीं समझे समय फिर रूठ जाता है 


जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये
मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है


ग़ज़ल ( जीबन के रंग )
मदन मोहन सक्सेना

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