प्रस्तुत ब्लॉग में मैनें उन ग़ज़लों और रचनाओं को एक जगह संकलित करने का प्रयास किया है , जिन्हें किसी पत्रिका ,मैग्जीन ,अखबार,संस्करण या किसी वेव साइट में शामिल किया गया है। आशा ही नहीं बल्कि पूरा बिश्वास है कि मेरा ये प्रयास आपको पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है।
Monday, May 25, 2015
Wednesday, May 20, 2015
Tuesday, May 5, 2015
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ८ ,मई २०१५ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक ८ ,मई २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
गजब दुनिया बनाई है, गजब हैं लोग दुनिया के
मुलायम मलमली बिस्तर में अक्सर बह नहीं सोते
यहाँ हर रोज सपने क्यों, दम अपना तोड़ देते हैं
नहीं है पास में बिस्तर ,बह नींदें चैन की सोते
किसी के पास फुर्सत है, फुर्सत ही रहा करती \
इच्छा है कुछ करने की, पर मौके ही नहीं होते
जिसे मौका दिया हमने , कुछ न कुछ करेगा बह
किया कुछ भी नहीं ,किन्तु सपने रोज बह बोते
आज रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते
मदन मोहन सक्सेना
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